जयपुर राजस्थान प्रदेश में लगातार मौसम में बदलाव और तापमान चढ़ाव-उतार से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती है। जैसे अगेती झुलसा और पछेती झुलसा रोग, अगर समय रहते इनका प्रबंधन न किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। कृषि अनुसंधान केंद्र, उम्मेदनगंज कोटा के पादप रोग वैज्ञानिक डॉ डीएल यादव ने बताया कि हाड़ौती संभाग में आलू की फसल में कोई रोग लगने की जानकारी नहीं आई है।
लेकिन, मौसम के आकलन के आधार पर आलू की फसल में पछेती झुलसा बीमारी निकट समय में लगने की संभावना है। उन्होंने बताया कि बादल होने पर आलू की फसल में फफूंद का संक्रमण होने की संभावना भी बढ़ जाती है। जो झुलसा रोग का प्रमुख करना होता है।
अगेती झुलसा: उन्होंने कहां कि झुलसा रोग दो प्रकार के होते हैं। एक अगेती झुलसा और दूसरा पछेती झुलसा। अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है और अगेती झुलसा में पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। सर्वप्रथम नीचे की पत्तियों पर संक्रमण होता है जहां से रोग ऊपर की ओर बढ़ता है। जिनमें बाद में चक्रदार रेखाएं दिखाई देती है। इस रोग के उग्र अवस्था में धब्बे आपस में मिलकर पत्ती को झुलसा देते हैं। इसके प्रभाव से आलू के फल छोटे और कम बनते है।
पछेती झुलसा: जबकि पछेती झुलसा दिसंबर के अंत से जनवरी के शुरुआत में लग सकता है, और इस समय आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग लग सकता है। पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में पत्तियां किनारे और शिरे से झुलसना प्रारंभ होती है। जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। पौधों के ऊपर काले काले चकत्ते दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़ जाते हैं। जिससे कंद भी प्रभावित होता है।
बदलती मौसम एवं वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप धारण कर लेता है। चार से छह दिन में ही आलू की पूरी फसल बिल्कुल नष्ट हो जाती हैं। दोनों तरह की झुलसा रोग के प्रबंधन के लिए मौसम और फसल की निगरानी करते रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक ही रासायनिक फफुंदनाशक का छिड़काव बार-बार न करें। छिड़काव करते नालिज फसल के नीचे की तरफ से ऊपर की तरफ करके भी छिड़काव करे। जिससे पौधे पर फफुंदनाशक अच्छी तरह पद जाएं।
जैविक उपचार: जैविक विधि से इस रोग पर प्रबंधन के लिए बुवाई से पहले बीजों को उपचारित करें। इसके लिए 5 से 10 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस या 5 से 10 मिली जी डर्मा प्लस को प्रति लीटर पानी में घोल कर एक किलोग्राम बीज को 15 से 20 मिनट तक डुबो कर उपचारित कर फिर 30 मिनट तक किसी छायादार स्थान पर हवा लगने के बाद बुवाई करने से पछेती झुलसा और अगेती झुलसा रोग से बचाव हो जाता है। इसके अलावा आलू की फसल को पछेती झुलसा रोग लगने से बचाने के लिए या लगे हुई इस रोग के शुरुआती चरण में इस समय 15 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए 7 दिन के बाद पुनः स्प्रे करें।
रासायनिक उपचार: उन्होंने बताया कि पछेती झुलसा रोग के प्रबंधन के लिए हमारे किसान भाई मैंनकोजेब 75 प्रतिशत डबल्यू पी 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें या 15 लीटर पानी के टैंक में 30 ग्राम मिलाकर स्प्रे करें और जिन किसान भाइयों के फसल में यह रोग नजर आ रहे है तो वह साइमौओक्सनिल और मैंनकोजेब 30 ग्राम 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर छिड़काव करें।
हमारे किसान भाइयों ध्यान रहे आलू की फसल में अत्यधिक नाइट्रोजन यानी यूरिया का छिड़काव करने या आलू की फसल को ज्यादा सिंचाई करने से भी अगेती झुलसा और पछेती झुलसा रोग लगने की संभावना को बढ़ा देता है। इसलिए अगर आप रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करे तो संतुलित मात्रा में ही करें। हो सके तो हमारे बताए गए जैव उर्वरकों का इस्तेमाल करना शुरू कर दें। इससे आपकी मिट्टी भी उपजाऊ बनेगी और फसल भी रोग मुक्त रहने के कारण उपज में अत्यधिक गुणवत्ता आयेगी। जिससे आपकी उपज का वजन बढ़ेगा और अच्छे दाम के साथ आपका स्वायथ्य भी बेहतर रहेगा खाने से।
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