अन्य फसलों की तरह मक्के की फसल में भी कई तरह के रोगों का प्रकोप होता हैं। इन रोगों के कारण पौधे सूखने लगते हैं। जिसका सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ता हैं। जिससे मक्के की खेती करने वाले किसानों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है। तो आइए जानते है कृषि जागृति के इस पोस्ट के माध्यम से मक्के की फसल को क्षति पहुंचने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
मक्के की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग
पति झुलसा रोग: इस रोग से प्रभावित मक्के के पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते है। इसके साथ ही मक्के के पौधों की निचली पत्तियां सूखने लगती है। फिर धीरे-धीरे ऊपर की पत्तियां भी सूखने लगती है। मक्के के फसल में लगे इस रोग को जैविक विधि से नियंत्रण करने के लिए 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
मेडिस पता अंगमारी रोग: यह एक फफूंद जनित रोग है। यह रोग बाइपोलरिस मेडिस नामक फफूंद के कारण उत्पन्न होता हैं। इस रोग से प्रभावित मक्के के पौधों की पत्तियों पर भूरे एवं स्लेटी रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। इन धब्बों के किनारे गहरे पीला रंग के होते हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्ती सुख जाती हैं। इस रोग से मक्के के पौधो को बचाने के लिए मक्के की प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। मक्के की एच.एम 10, एच.क्यू.पी.एम 4, एच.क्यू.पी.एम 5, एच.क्यू.पी.एम 7, किस्में इस रोग के प्रति सहनशील हैं। मक्के की फसल में लगे इस रोग को नियंत्रण करने के लिए रोग लगने के प्रारंभिक अवस्था में ही 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-डर्मा प्लस को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
जीवाणु तना गलन रोग: मक्के की फसल में लगने वाला यह रोग इर्विनिया क्राइसेथिमी नामक जीवाणु के कारण होता हैं। इस रोग के लगने पर मक्के के पौधों की ऊपर की पत्तियां मुरझाने लगती हैं। और तने के नीचे की पत्तियां नरम एवं बदरंग हो जाती हैं। तना गलने लगता हैं। और तने से गलने की बदबू आने लगती हैं। कुछ दिनों बाद पूरा पौधा स्वयं नष्ट हो जाता हैं। मक्के की फसल में इस रोग के लगने से बचाने के लिए 150 लीटर पानी में एक लीटर जी बायो फॉस्फेट एडवांस को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
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