पिला रतुआ रोग जो की गेहूं की फसल में लगने वाली प्रमुख फफूंद जनित बिमारियों में से एक है। यह ठंडे और गीले मौसम में फैलता है। यह रोग उपज को 50 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए गेहूं की फसल को इससे बचाने के लिए सही समय पर उपचार करना बेहद जरूरी है। सही समय में उपचार करने पर आप अपने फसल को गंभीर उपज हानि होने से बचा सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे कृषि जागृति के इस पोस्ट में।
पिला रतुआ रोग की पहचान कैसे करें!
गेहूं की पत्तियों और पत्तों के आवरण पर छोटे गोल आकार के उभरे पीले या काले व भूरे हुए धब्बे दिखाई देते है। जो संक्रमित पत्तियों पर पीला रतुआ के ये धब्बे धारीदार पीले रेखाओं जैसे दिखते है। इसलिए फसल के संक्रमित भाग भूरा होकर सूखने लगता है।
गेहूं की फसल को पिला रतुआ रोग लगने से कैसे बचाव!
इस समय गेहूं की फसल में ये रोग लगने की संभावना रहती है। इसलिए लिए हमारे किसान भाई प्रति एकड़ गेहूं की फसल में 500 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को 100 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर स्प्रे करें। या 15 मिली जी बायो फॉस्फेट एडवांस को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए 10 दिन के बाद पुनः स्प्रे करें।
यदि आप अगले रबी सीजन में भी गेहूं की फसल लेने के बारे में सोच रहे हैं, तो आप गेहूं की फसल की बुवाई ना करें, बल्की अन्य किसी रबी फसलों को लगाएं। इससे आप बिना किसी रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव किए आप प्रकृति रूप से गेहूं की फसल में लगने वाले पीला रतुआ रोग को खत्म कर सकते हैं। गेहूं की फसल उस खेत में अन्य फसलों के तीन साल बुवाई करने के बाद ही लगाएं। और हां हो सके तो आप अपने खेतों में रासायनिक खादों वो रासायनिकी कीटनाशकों की जगह जैव उर्वरकों एवं जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
इससे आपकी खेत की मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ेगी और फसलें अपने अनुसार पोषक तत्व स्वयं ग्रहण कर लेंगे जितना उन्हें चाहिए। इसलिए जितना हो सकें मिट्टी को पोषण प्रदान करें और ये संभव है जैव उर्वरकों से ही न की रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों से। अगर जो हमारे किसान भाई कृषि जागृति के सुझाव अनुसार गेहूं की खेती कर रहे होंगे। उनके फसल में कम संभावना रहेगी। कोई भी रोग व किट लगने के क्योंकि कृषि का सुझाव केवल मिट्टी को पोषण प्रदान करने के बारे में किसानों को बताता है।
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