मिर्च एक प्रमुख नगदी फसल है। इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में देश के कुल उत्पादन की 80 प्रतिशत मिर्च उगाई जाती है। लोग मिर्च की खेती व्यवसाय के तौर पर करते है। मगर मिर्च की फसल को कीटों व रोगों से हानि पहुंच सकती है, इसलिए इनका जैविक प्रबंधन ज़रूरी है। आज हम आपको कृषि जागृति के इस पोस्ट के माध्यम से बताएंगे कि मिर्च की फसल पर लगने वाले कीटों की पहचान और उनसे मिर्च की फसल को बचाने का उपाय सुझा रहे हैं।
मिर्च की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग व बचाव
थ्रिप्स किट: मिर्च की फसल में लगने वाले इस कीट का वैज्ञानिक नाम सिटरोथ्रिटस डोरसेलिस हुड है। यह कीट शुरुआती अवस्था में ही मिर्च के पौधों की पत्तियों व अन्य नरम हिस्सों से रस चूस लेता है, जिसकी वजह से पत्तियां मुड़ जाती हैं। इससे बचने के लिए बुवाई से पहले मिट्टी को उपचारित करें एवं प्रति किलोग्राम बीज को 10 मिली जी बायो फॉस्फेट एडवांस से उपचारित करे। फिर नर्सरी के लिए बुवाई करें।
भभूतिया रोग: मिर्च की फसल में लगने वाला यह रोग वायु जनित रोग हैं। इस रोग के लगने पर पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद पॉउडर, निचले भाग तथा तनो पर सफेद चूर्ण दिखाई देने लगते हैं। इस रोग के प्रभाव होने पर पौधे की पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, यह रोग नम वातावरण में ज्यादा फैलता हैं। इससे बचाव के लिए 15 मिली जी बायो फॉस्फेट एडवांस को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए 10 दिन बाद पुनः स्प्रे करें।
पीली माइट: यह पीले रंग का कीट है। पीठ पर सफेद धारियां होती हैं। इस रोग से पत्तियां नीचे मुड़ जाती हैं। देखने में सिकुड़ी लगती हैं। कीट का प्रौढ़ तथा शिशु दोनों हानि पहुंचाते हैं। प्रोपाइगाठ 57 ईसी की 3.5 एमएल एक लीटर पानी में घोल बनाएं अथवा घुलनशील सल्फर दो ग्राम एक लीटर पानी में घोल बना कर 15 दिनों के अंतराल में दो-तीन छिड़काव करें।
फली छेदक: इसकी सुड़ियां फलियों में छिद्र करके उनके अंदर प्रवेश कर जाती हैं और फलियों को खाती रहती हैं। कभी-कभी यह कीट पौधों की कोमल शाखाओं को भी काट देती है। फलियों को तोड़ने के बाद पौधों पर सेविन के 0.2 % घोल का छिड़काव करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर 10 से 15 दिन के अंतर पर दूसरा छिड़काव करें।
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